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मिलता रहूंगा ख़्वाब में

शहरयार

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7929
आईएसबीएन :81-288-0867-2

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शहरयार की ग़ज़लों और नज़्मों का अद्वितीय संकलन...

Milta Rahoonga Khwab Mein - A Hindi Book - by Shaharyar

शहरयार की ग़ज़लें और नज़्में


समकालीन उर्दू शायरी को नयी पहचान दिलाने में शहरयार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हिन्दी पाठकों में भी वे काफी लोकप्रिय और सम्मानित हैं।

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान-सा क्यों है
इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है

लिखने वाले शहरयार आम आदमी की अनुभूतियों को बड़ी सहजता के साथ अपनी शायरी में अभिव्यक्ति देते हैं। शायरों की नयी पीढ़ी आज उन्हें अपने आदर्श के रूप में देखती है।


क़िस्सा मिरे जुनूँ का बहुत याद आयेगा
जब-जब कोई चिराग़ हवा में जलायेगा

रातों को जागते हैं, इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बन्द आँखें तो फिर लौट जायेगा

कब से बचा के रक्खी है इक बूँद ओस की
किस रोज़ तू वफ़ा को मिरी आज़मायेगा

काग़ज़ की कश्तियाँ भी बड़ी काम आएँगी
जिस दिन हमारे शहर में सैलाब१ आयेगा

दिल को यक़ीन है कि सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क़२
कोई फ़सुर्दा३ दिल ये ग़ज़ल गुनगुनायेगा

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१. बाढ़ २. प्रेम की राह में ३. उदास


दोस्त अहबाब की नज़रों में बुरा हो गया मैं
वक़्त की बात है क्या होना था क्या हो गया मैं

दिल के दरवाज़े को वा१ रखने की आदत थी मुझे
याद आता नहीं कब किससे जुदा हो गया मैं

कैसे तू सुनता बड़ा शोर था सन्नाटों का
दूर से आती हुई ऐसी सदा हो गया मैं

क्या सबब इसका था, मैं खुद भी नहीं जानता हूँ
रात खुश आ गई और दिन से ख़फ़ा हो गया मैं

भूले-बिछड़े हुए लोगों में कशिश अब भी है
उनका ज़िक्र आया कि फिर नग़्मासरा२ हो गया मैं

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१. खुला २. सुमधुर गाने वाला


तिरी गली से दबे पाँव क्यों गुज़रता हूँ
वो ऐसा क्या है जिसे देखने से डरता हूँ

किसी उफ़क१ की ज़रूरत है मेरी आँखों को
सो ख़ल्क२ आज नया आसमान करता हूँ

उतारना है मुझे कर्ज़ कितने लोगों का
ज़रा सुकून मिले तो हिसाब करता हूँ

अजब नहीं कि किसी याद का गुहर मिल जाए
गये दिनों के समन्दर में फिर उतरता हूँ

बड़े जतन से बड़े एहतिमाम३ से तुझको
भुला रहा हूँ, मोहब्बत का दम भी भरता हूँ

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१. क्षितिज २. सृष्टि करना ३. प्रबन्ध, बन्दोबस्त


पड़ाव आये कई एक घर नहीं आया
कि रास अब के भी हमको सफ़र नहीं आया

किया था ख़ल्क अजब आसमान आँखों ने
कहाँ का चाँद, सितारा नज़र नहीं आया


जो एक बार गया सब्ज पानियों की तरफ़
सुना गया है कभी लौट कर नहीं आया

चिराग़ जलते हवाओं की सरपरस्ती१ में
हमारे लोगों ! तुम्हें ये हुनर नहीं आया

भुलाके तुझको ख़जिल२ होते और क्या होता
भला हुआ कि दुआ में असर नहीं आया

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१.देख-रेख २. लज्जित


ये चाहती है हवा उसको आजमाऊँ न मैं
कोई चिराग़ कहीं भी कभी जलाऊँ न मैं

सुकूत साया रहे इस ज़मीन पर हरदम
कोई सदा कोई फ़रियात लब पे लाऊँ न मैं

यूँ ही भटकता रहूँ उम्र भर उदास-उदास
सुराग़ बिछड़े हुओं का कहीं भी पाऊँ न मैं

सफ़र ये मेरा किसी तौर मुख़्तसर१ हो जाए
वो मोड़ आये कि जी चाहे आगे जाऊँ न मैं

भुला तो दूँ तेरे कहने पे तुझको दिल से मैं
मगर ये शर्त है, तुझको भी याद आऊँ न मैं

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१. संक्षिप्त

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